समालोचनात्मक चिंतन (= सम + आलोचना + त्मक , अर्थात, सभी पक्षों या पहलुओं की समान(=बराबर) रूप में आलोचना करते हुए उनको परखना , उनके सत्य होने के प्रमाण दूड़ना) (अंग्रेजी में, क्रिटिकल थिंकिंग, critical Thinking) एक प्रकार का बुद्धि योग है /
भारतीय शिक्षा पद्वात्ति में जिस पहलू पर गौर नहीं किया गया है, वह क्रिटिकल थिंकिंग है / ऐसा पश्चिम के समाजशास्त्रियों का भारतीय शिक्षा पद्वात्ति के बारे में विचार है /
भारतीय शिक्षा में मूलतः स्मरण शक्ति पर ही ध्यान दिया जाता है / वैसे भारतियों को भी इस बारे में एहसास है की उनकी शिक्षा पद्वात्ति में कुछ गड़बड़ ज़रूर है , मगर यही "समालोचनात्मक चिंतन" की कमी से अक्सर हम लोग इस गड़बड़ी की जानकारी को भी अपनी स्मरण शक्ति द्वारा ग्रहण करते है और एक दूसरे को यह बतलाते फिरते है की यह कमी "प्रैक्टिकल नॉलेज " ( प्रयोगात्मक जानकारी ) की कमी की है /
'प्रैक्टिकल नॉलेज' एक मुख्य गड़बड़ नहीं है , और क्यों और कैसे नहीं है यह भी समझने के लिए कुछ समालोचनात्मक चिंतन होने की आवश्यकता है , जो की आगे इस निबंध में विचार करेंगे / अभी , पहले यह समझने का प्रयास करेंगे की 'समालोचनात्मक चिंतन' होता क्या है, और कैसे और क्यों इसे बाल्यकाल से ही शिक्षा प्रणाली में परिचित करवाना आवश्यक है /
"क्रिटिकल थिंकिंग, द आर्ट ऑफ़ आर्ग्युमेंट " (अर्थात , "समालोचनात्मक चिंतन, विवेकपूर्ण विचार करने की कला " ) , में इस क्रिया को भी एक प्रकार के शैक्षिक विषय के रूप में अध्ययन करा गया है /
'प्रैक्टिकल नॉलेज' के आभाव को भारतीय शिक्षा पद्वात्ति का मुख्य दोष मनाने वालों में वह असल दोष बाकी रह जाता है, जो हमारी शिक्षा प्रद्वात्ति का वास्तविक दोष है -- समालोचनात्मक चिंतन का आभाव /
इसलिए, क्यों की यह भी एक सोचने वाली बात है की विज्ञानं के कई सारे विषयो में विषय वास्तु प्रकृति में भी कुछ ऐसे व्यव्प्त है की उन के ऊपर प्रयोग के द्वारा उनके व्यवहार का सत्य दिखाना करीब करीब असंभव है / जैसे की विद्युत् की गति जो के करीब तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड "मापी" गए है , या फिर की धरती का भार, या सूरज से धरती की दूरी / यह सब जानकारियों किसी अन्य संसाधन, जो की कल्पना और समालोचनात्मक चिंतन के द्वारा प्राप्त करी गयी है, किसी 'प्रैक्टिकल' के द्वारा दर्शाना या प्रमाणित करना करीब-करीब असंभव हैं /
समालोचनात्मक चिंतन के मनुष्य अक्सर आगे चल कर नास्तिक हो जाते हैं/ यह स्वाभाविक है, क्यों की समालोचनात्मक चिंतन एक रवैया बन जाता है, जीवन जीने का , यह विषयों को किताबों से बहार निकल कर उन्हें आसपास दिखलाने लगता है / जब ज्ञान का भण्डार बहोत विशाल होने लगा था, तब मनुष्यों में ज्ञान के वितरण क्रिया में उससे "विषय" की संज्ञा दे कुछ वर्गों में उन्हें विभाजित किया था, जिससे की नव युवकों को आसानी से प्रदान कराया जा सके / मगर 'समालोचनात्मक चिंतन' की कमी की वजह से यह नव युवक उनके उन ख़ास विषय की पुस्तकों में ही ढूढने लगे, उन्हें आप में सलग्न करना भूल गए और "प्रैक्टिकल" जीवन से दूर चले गए / ऐसा नहीं है की जीव-विज्ञानं की जानकारी गणित, या भौतिकी , या रसायन-शास्त्र, या फिर की राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में नहीं पड़ती / भारतीय मूल का छात्र यह ही त्रुटी करता है की वह इन विषयों में प्रयोग ख़ास "तकनीकी शब्दकोष" को दूसरे विषय के तकनीकी शब्दकोष से सम्बन्ध नहीं कर पता है / या फिर की एक गलत सम्बन्ध बना देता है, जिसकी गलती वोह पहचाने में गलती करता है, अपने कुछ ख़ास विश्वासों और मान्यताओं के वजह से /
इस सम्बन्ध में "एनालोजी" ( = किसी सत्य को समझने के लिए उपयोग होने वाले साधारण और मिलते जुलते उद्दहरण, उपमान, या समरुपी ) के प्रयोग से भ्रमित भी हो जाता है , और उनसे कभी कभी प्रेरित हो कर कुछ अलग ही गलत-सलत 'एनालोजी' देने लगता है /
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
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