परिवार-वाद में गलत क्या है ? इस प्रश्न की एक पुनः समीक्षा पर यह बोध भी प्राप्त होता है की परिवार-वाद योग्यता को अपने आधीन करने में लिप्त रहता है / परिवार में से आये "राज कुमार " अपनी योग्यताओं की सीमाओं की अपने अंतर-मन में भली भाति जानते है / इसलिए वह अपने आस-पास मौजूद योग्य व्यक्तियों का दमन करने की बजाये उन्हें अपना सहयोगी (या "गुलाम") बनाने की रणनीति रखते हैं / येह सहयोगी उन्हें सीमाओं के बहार उठा कर रखने में उपयोगी होते है /
वैसे आपसी-सहयोग किसी भी अच्छे नेतृत्व का आधार स्तंभ भी होता है / इसलिए यह भ्रम हो सकता है की 'परिवार-वादी सहयोग' और 'आदर्श-नेतृत्व सहयोग' में क्या भेद होगा , या क्या अंतर होगा ? यह कैसे कह सकते हैं की 'परिवार-वादी सहयोग' किसी की पराधीनता के समान है ?
इस भ्रम का निवारण यह है की 'परिवार-वादी सहयोगी' एक आदर्श योग्यता से प्राप्त उन नीतियों और न्यायों को पालन नहीं करते जो उनके परिवार को अगला शासक, (= नेतृत्व ) बनाने में बांधा दे सकते है / तो परिवार-वाद के संरक्षण में एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण होता है जो वफ़ादारी , स्वामीभक्ति में लाभ प्रदान करवाती है / मगर प्राकृतिक नियमो के अनुसार , चूँकि स्वार्थ से निर्मित लाभ निष्पक्ष नहीं होता हैं इसलिए इस तरह के लाभ में किसी अन्य की हानि अवश्य होती है / अब आदर्श प्रजातंत्र में सरकार-व्यवस्था का उद्देश्य किसी को भी हानि में जीवन के न्यूनतम स्तर के नीचे ना गिरने देने का भी है /
परिवार-वाद में विरोधी पक्ष की उपस्थिति में यह हानि विरोधियों की कही जाती है / यह न्यूनतम रेखा के नीचे तक की हानि हो सकती है /
परिवार-वाद अपने पूर्ण प्रसार ,व्यापकता में राजा-महराजा की राज नरेश-व्यवस्था के समतुल्य है / अंततः परिवार-वादी अपने सहयोगियों का भी दमन करने लगते हैं अगर यह सहयोगी उनके लाभ और आनंद के बीच में बांधा बनते हैं / दमन के समय "न्याय" (असल में वह अन्याय हो रहा होता है , मगर उसे न्याय कह कर पुकारा जाता है ) के वही तर्क प्रयोग होते है जो आरम्भ में विरोधियों के दमन में प्रयोग हुए थे / तब यह प्रमाण मिलता है की क्यों परिवार-वाद में न्याय के तर्क असल में कुतर्क और अन्याय थे / योग्यता का परिवार-वाद का "पराधीन सेवक" होने का निर्णायक प्रमाण भी तभी प्राप्त होता है /
आधुनिक राजनीति में बात चाहे कानून-व्यवस्था की हो , चाहे विकास की , परिवार-वादी व्यवस्थाएं उन निति का स्थापन नहीं करेंगी जो अंततः उनके परिवार-वाद को चोट दे सकता है / यह सही नीतियों इन परिवार-वादी के आय के स्रोत को भी बंधित कर सकता है / विचार-संग्राहक संस्थाएं ऐसी निष्पक्ष और जन-कल्याणकारी नीतियों का निर्माण करती रही है / भारत के बहार अंतर-राष्ट्रिय मंच पर ऐसी "योग्य" नीतियों अस्तित्व में हैं / यह जानकारी का अधिकार , या पारदर्शिता यही से आई है / अब आगे की "योग्य' नीतियाँ का दमन परिवार-वाद पराधीनो की स्वामीभक्ति की देन है /
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
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