महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने एक कथन में गाँधी जी की मूढ़ता की हद्दों तक जाने वाली शांतिवादी (=अहिंसा ) विचारधारा के बारे में अपना अविश्वास व्यक्त करते हुए कहाँ था की "आने वाली पीड़ियाँ यह शायद ही विश्वास कर सकेंगी की कभी कोई हाड़-मांस का बना ऐसा शख्स इस धरती पर विचरण किया करता था । "
खैर , हमारे आत्म-पूजन , आत्म-भक्ति वाले देश भारत ने अल्बर्ट आइंस्टीन के इस कथन को अपने ही तरह से उच्चारित किया है । अल्बर्ट आइंस्टीन जर्मनी में पैदा हुए और अमेरिका में शरणार्थी बन कर आये उन कुछ लागों में थे जिन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति को चिट्टी लिख कर एटम बम्ब बनाने के तरीकों पर आगे बढ़ने को कहा था । बहोत बाद में अमेरिका ने जापान पर एटम बम्ब का प्रयोग भी किया ।
एक कल्पना की उड़ान लेकर देखें तब हंसी आयेगी की जैसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने गाँधी जी पर अपना अचम्भा व्यक्त किया था , अगर आइंस्टीन भारत में पैदा हुए होते तब उनकी दिमाग को सम्पूर्ण पलट-फेर कर देने वाली 'सापेक्षता के विशेष सिद्धांत' और बाद में आये 'सापेक्षता के आम सिद्धांत' पर शायद हम भारतियों की भी यही अचम्भे वाली प्रतिक्रिया होती की "क्या-क्या कहता रहता है यह आदमी । एक दम फालतू । " आज भी हम में से कई उन सिद्धांतों को अनजाने में पढ़ कर यही सोचते होंगे की ,"इसे तो कभी भी नोबेल पुरुस्कार नहीं मिलना चाहिए । नोबेल पुरुस्कारों में ज़रूर कोई घपला, कोई राजनीती होती होगी । "
भारत में पैदा हुए आइंस्टीन शायद पागल करार दे दिए गए होते और किसी रेलवे के पुल के पास नशेड़ी बन कर मर चुके होते । नोबेल का तो सपना भी बेकार होता ।
आजकल के दिनों में अल्बर्ट आइंस्टीन के द्वारा दी गयी खोजें और पैमानों को तोड़ देने वाली नयी खोजें बहोत सी मिल रहीं हैं । पश्चिम में अल्बर्ट आइंस्टीन के दिए गए पैमानों के टूटने के बाद भी उनकी इज्जत बिलकुल कम नहीं हुयी है । मगर शायद हम इन्ह नयी खोजें से अपने 'सही होने' का प्रमाण तैयार कर लें की "अल्बर्ट आइंस्टीन के बारे में तो हमारी राय पहले से ही सही थी (:-P )। "
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
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