सामंतवादी मानसिकता भी मनुष्य की बौद्धिक योग्यता, उसका IQ घटा देने की क्रिया करती है | सामंतवादी मानसिकता एक प्रकार का सामाजिक व्यवहार है जब कोई व्यक्ति खुद को दूसरे से अधिक महत्वपूर्ण , शासन-सत्त, रासुक वाला और योग्य समझता है | मनोविज्ञान की समझ से देखें तो सामंतवादी मसिकता मनुष्य के सामाजिक न्याय की नैसर्गिक समझ को प्रभावित करती है जिससे की उसके तर्कों में तोड़-मरोड़ आ जाते है | तर्कों में आये , उत्पन्न , मरोड़ का सीधा असर विवेक , विवेचन बुद्धि पर पड़ता है और फिर बौद्धिक क्षमता ही कम हो जाती है | यह प्रकिय एक साथ पूरे-पूरे समाज या एक पूरे राष्ट्र के साथ घट सकती है -- जिससे की पूरे नागरिक बल ही अल्प-बुद्धि वाला बन सकता है |
भारत का इतिहास तो भरा हुआ है इस सामंतवादी मानसकित से | आप चाहे तो छुआ-छूत वाली जात प्रथा को देखें, या आधुनिक "लाल बत्ती " कल्चर को - या सरकारी अधिकारीयों के 'लाट साहबी ' व्यवहार को -- यह सब सामंतवादी मानसिकता के ही अलग-अलग स्वरुप हैं | सामंतवादी मानसिकता में धर्म -और-न्याय की जगह ताकत और हिम्मत को प्रयोग किया जाता है | सामंतवादी दिम्माग में यह एहसास करना ज़रूरी नहीं होता की सामने खड़ा हुआ जीव भी मनुष्य है (और न्याय और धर्म का व्यवहार क्या होगा ) , यह सोचना ज़रूरी है की "उसकी हिम्मत न होने पाए मेरे सामने ऐसा करने की "|
बात अभी आज कल चल रहे एक भारतीय महिला राजदूत के प्रकरण की करते है और उससे उत्पन्न भारत-अमेरिका राजनयिक संबंधों की दर्रार की करते हैं | आश्चर्य होता है की भारत अमेरिकी राजनायिकों के विरुद्ध इतने कड़े कदम उठा भी रहा है तो कब --जब भारत का नैतिक और वैधैनिक आधार बहोत कमजरो है | यहाँ इस केस में महिला राजनयिक के विरुद्ध शिकायत-करता , पीडिता , भी तो एक भारतीय महिला है | जिनेवा कनवेनशन के तहत राजनायिकों को वैधानिक-मुक्ति प्राप्त है , बशर्ते की आपराधिक मामला न हो | यहाँ जब शिकायतकर्ता ने यातना के आरोप लगाये है तो वह राजनैयिक को उपलब्ध वैधानिक-मुक्ति में नहीं आते है | यह स्वतंत्र व्यक्ति के आरोप एक दूसरे स्वतंत्र व्यक्ति पर है , जिनमे की मालिक और नौकर का रिश्ता है | याद रहे की नौकर और गुलाम में अंतर है -- और यह यातना के आरोप ग़ुलामी की और इशारा करते हैं , जो की मानवाधिकर का बड़ा संगीन आरोप होता है | अभी यहाँ भारत में भी एक राज्य के विधायक की पत्नी पर भी यही आरोप का केस चल रहा है , जहाँ नौकर की मृत्यु भी हो गयी है |
तो तकनीकी रूप में, जिनेवा कनवेनशन की ही समझ से यह आरोप का अपराध राजनयिक वैधानिक-मुक्ति के बहार है , और मेजबान देश को कार्यवाही का हक है , जो की स्थनीय कानून के मुताबिक उसकी ज़िम्मेदारी भी है | ऐसे में कार्यवाही के दौरान उसकी सरकार ने पाया की गृह-सहयोगी (maid help ) के वीसा पेपर में उसकी गृह-स्वामी द्वारा दी गयी जानकारी गलत ही नहीं , सोच समझ कर झूठी दी गयी है -- सबसे प्रथम की तनख्वाह की पेशकश | गृह-स्वामी की यह हरकत भी स्वयं में उस गृह-सहयोगी की आरोपों को वैधानिक तकनीकी दृष्टि से सही होने का इशारा करते है | ऐसे में मामले की छान बीन होती है , जिसके दौरान गृह-स्वामी के देह-तलाशी भी होती है | आश्चर्य है की भारत , यहाँ का मीडिया और यहाँ की सरकार इस कार्यवाही को अपने आप में गलत करार दे कर राजनैयिक वैधानिक-जवाब-मुक्ति के प्रावधान की मांग कर रही है , जब की तकनिकी रूप में कुछ गलत नहीं है | कुछ साल पहले अमेरिका ने यही कदम IMF के संभावित सेक्रेटरी के केस में भी किया था , जो की फ्रेंच नागरिक हैं | उन्हें भी यही राजनयिक जवाब-मुक्ति प्राप्त थी |
भारतीय और अमरीकी तर्कों में मरोड़ कहाँ है और क्यों है ?
इस प्रश्न के उत्तर की तलाश में थोडा विषय ज्ञान को टटोलते हैं | राजनयिक को वैधानिक जवाब-मुक्ति का प्रावधान क्यों दिया जाता है ? क्योंकि यह राजनयिक का ओहदा ख़ास होता जिसके बिनाह पर राजनायिक जवाब-मुक्ति का प्रावधान हुआ है , या की राजनयिक को मेजबान देश में शत्रुता से संरक्षित करने वाले तनिकी कारणों से यह जवाब-मुक्ति प्राप्त है , और इसकी वगाह से उसका ओहदा ख़ास है ?
ऊपर लिखे दोनों विकल्पों को गौर से पढ़िए और अंतर को समझिये |
जवाब-मुक्ति के कारण तकनीकी हैं , और फिर इस तकनीकी ख़ास प्रावधान ने राजनयिक को विशिष्ट दर्ज़ा दिलवाया है | न की उल्टा – की ओहदा ख़ास है इसलिए उसको जवाब-मुक्ति प्राप्त होगी |
दोनों विकल्पों के बीच का अंतर यह सामंत-वादी मानसकिता के आधार पर समझा जा सकता है |
इधर भारत का मीडिया अमरीका पर ‘दादा गिरी’ के आरोप अकसर लगाते रहता हैं | जबकि हास्यास्पद सत्य यह है की ‘लाल बत्ती कल्चर’, विआइपी दर्ज़ा , राजनीतिज्ञों को भ्रस्टाचार और अपराधो की सजा न मिलना , सड़क-नाका पर तोड़ फोड़ करना – यह सब भारतीय संस्कारों के सत्य है !
जैसा की लेख में ऊपर लिखा है , सामंतवादी मानसिकता तर्कों को मरोड़ देती है , जो की हमने ऊपर लिखने दोनों विकल्पों के अंतर के समझने के दौरान देखे , और सामंतवादी मानसिकता धर्म –और न्याय की स्थान पर हिम्मत-और-ताकत का तर्क रखना पसंद करती है – यह निष्कर्ष समझ सकते हैं | यह तर्क-मरोड़ कोई नयी क्रिया नहीं घटी है | अभी कुछ एक वर्षो में जन-लोकपाल बिल के शास्त्रार्थ के दौरान भी यह देखने को खूब मिली थी | गौर से देखें, तर्क-मरोड़ के साथ में सामंतवादी मानसिकता साथ में सलग्न होगी –जो की सूचक है की तर्क-मरोड़ सामंत वादी व्यवहार से उताप्पन होता है | फिर , जैसा की थ्योरी है – तर्क-मरोड़ से सत्य-और-न्याय ख़त्म होता , फिर विवेचन मष्तिष्क प्रभावित होता है और उसका नाश होता है | इससे समाज में विकृति आती है |
भारतीय मडिया इस महिला राजनयिक प्रकरण को पकिस्तान में घटित रिचर्ड डेविस प्रकरण से भी खूब जूद कर देख रहा है | यदि हम ऊपर लिखे राजनयिक जवाब –मुक्ति प्रावधान के करक को स्पस्ट हो कर समझे तब पता चलेगा की अमेरिका उस प्रकरण में भी सत्य-और-न्याय के संग था ! यह सब को पता है की रिचर्ड डेविस न ही कोई राजनायिक था , न कोई सरकारी कर्मचारी | मगर वह अमेरिक खुफिया एजेंसी के लिए काम कर रहा था , इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने खुद उसको बचाने के लिए कदम उठाए | यहाँ भारतीय महिला राजनयिक को जवाब-मुक्ति का प्रावधान है मगर उन पर इस प्रावधान के दुरूपयोग का आरोप है | ऐसे में हम जिनेवा कॉनवेनशन के प्रावधानों के विरुद्ध जा कर राष्ट्रिय सम्बन्ध विच्छेद करने पर उतारो हो गए हैं | सरबजीत सिंह पकिस्तान में कैद थे और शायद देश के लिए जासूसी का कार्य कर रहे थे , मगर हमारी सरकार ने उन्हें कोई राजनयिक प्रावधान के तहत संरक्षण नहीं दिलवाया |
इधर भोपाल गैस काण्ड के आरोपी अमेरिकी नागरिक को खुद हमारी सरकार ने ही सुरक्षा और सम्मान के साथे देश से निकलवा दिया था | जब की उस पल न्याय और धर्म की मांग थी की उसे सजा हो |
यह सामंतवादी मानसकित भी न्याय की अजब ही मरोड़ी हुई समझ रखती है | यह अपने फायेदे के अनुसार ही न्याय प्रावधानों को लागो करती है , या फिर की नहीं करती है |
अभी इसी महिला राजनयिक प्रकरण में भी भारत सरकार की जवाबी कारवाही की विवेचना करें | हमे अमरीकी राजदूतों को उपलब्ध सुरक्षा को वापस लिया है , या सीमित किया है | तब जब की अमेरिका न तकनिकी कारण दिया है की महिल राजदूत ने वीजा-धोखाधडी करी है एक झूठी जानकारी दे कर | क्या भारत सरकार को अमरीकी राजदूतो को प्राप्त भारतीय वीजा में एक भी गलत अथवा झूठी जानकारी नहीं मिली ? या एक भी तकनीकी कारण नहीं मिला यह जवाई कारवाही करने का ? यह भारत की सामंत वादी मानसिकता की हठधर्मी नहीं तो क्या है ?
सामंत वादी व्यवहार और उसके सामाजिक प्रभाव अभी ज्यादा गहराई में समझे नहीं गए हैं | मगर शायद यह वह शोध कार्य होगा जो हम भारतीयों को वापस के सभ्यता और एक अच्छा महान राष्ट्र बनने में सहायक सिद्ध होगा | सुपरपॉवर परमाणु बम के दम पर नहीं बनते है , महानता धर्म-न्याय-सत्य को प्राप्त करने से स्वयं ही आती है |
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured Post
नौकरशाही की चारित्रिक पहचान क्या होती है?
भले ही आप उन्हें सूट ,टाई और चमकते बूटों में देख कर चंकचौध हो जाते हो, और उनकी प्रवेश परीक्षा की कठिनता के चलते आप पहले से ही उनके प्रति नत...
Other posts
-
समालोचनात्मक चिंतन (= सम + आलोचना + त्मक , अर्थात, सभी पक्षों या पहलुओं की समान(=बराबर) रूप में आलोचना करते हुए उनको परखना , उनके सत्य होने ...
-
मेरा खयाल है कि हमें बारबार इतिहास कि ओर इसलिए भी देखना पड़ जाता है क्योंकि हमारी वर्तमान काल की कई सारी समस्याओं के मूल को समझने की दिक्कत ...
No comments:
Post a Comment