आम आदमी पार्टी की अपनी कोई विशिष्ट आर्थिंक या विदेश निति नहीं है| वैसे सच बोले तो देश में बाकी दोनों बड़ी पार्टियों की भी कोई निति है क्या ? और छोटी क्षेत्रीय पार्टियों की क्या निति है?- कुछ नहीं | क्योंकि उन्हें कुछ ज्यादा आवश्यकता ही नहीं है अपने क्षेत्र से बाहर मुंह घुमा कर देखने की | हाँ कुछ एक पार्टियाँ विदेश से सम्बंधित विषयों पर कुछ-कुछ हल-चल करती है -- मगर विदेश से अर्थ सिर्फ पाकिस्तान, बंग्लादेश , नेपाल तक है | कुछ एक चीन को दुश्मन मानती है और कुछ एक चीन को आर्थिक प्रतिस्पर्धी | अमरीका को वामपंथी पार्टियाँ दुश्मन और "पूंजीवादी" ही मानती है |
आर्थिक नीतियों पर तो छोटी पार्टियों की निति तो एक शब्द में समझा जा सकती है - भ्रष्टाचार |
यह सारी नीतियाँ किसी फिल्मी प्रभाव में उत्पन्न है , किसी मूलभूत अध्ययन से निकले सिद्धांत पर नहीं आधारित हैं | संक्षेप में कहें तो -- जिसकी जैसी भावना, वही उसकी निति है | तथ्यों का संग्रह और अध्ययन किसी ने नहीं किया है |
आम आदमी पार्टी का उद्गम भ्रष्टाचार निवारण के आन्दोलन से हुआ है और वही यह तय कर देता है की इसका मुख्य ध्यान-केंद्र आर्थिक और सामाजिक न्याय पर ज्यादा है | इससे आर्थिक नीतियों की दिशा भी तय हो सी जाती है | यानी जो भी अध्ययन से प्राप्त सिद्धांत पर करना होगा , वही निति मानी जाएगी | योजना आयोग और वित्त मंत्रालय इत्यादि में कोई कमी नहीं है शैक्षिक व्यक्तियों की | और न ही आम आदमी पार्टी में कोई कमी है उच्च शैक्षिक व्यक्तियों की जो अध्ययन से प्राप्त विचारों को समझ नहीं सके| अब 2G/3G प्रकरण या फिर कोयला आवंटन का प्रकरण को ही देखिये | नौकरशाही में उच्च शिक्षा प्राप्त सचिवों की कमी नहीं थी, न ही उनमे से कईयों ने अपने विचार प्रकट करने में कमी रखी थी | मगर सुनने वाले यूपीए के मंत्रियों के मन में ही जब भ्रष्टाचार भरा हुआ था तब कौन रोक सकता है नीलामी के स्थान पर मन-वांछित कोयला आवंटन करने से ! योजना आयोग ने तो तय कर ही दिया था की निजीकरण होना है |
चुनावी पार्टियों को अगर कोई ख़ास कारण न हो तो अपनी स्वयं की आर्थिक निति की आवश्यता भी नहीं होती | प्रकृत को देखिये की यही भूमि का सत्य भी है | किसी चुनावी पार्टी की अपनी खुद की कोई ख़ास निति नहीं है | मगर आम आदमी पार्टी एक ख़ास वस्तु ज़रूर दे रही है जो की तय कर देगा की "आप" बाकी सभी पार्टियों से अलग है | वह वस्तु आम आदमी पार्टी का विशिष्ट प्रेम "जन लोकपाल विधेयक " है | -- देश के शैक्षिक और चयनित लोगों को राजनीतिज्ञों से आज़ादी दिलवाना | एक ऐसी संस्था जिसे राजनैतिक प्रभाव से मुक्त कर के रखा जा सके और देश में फिर से चुनावी और चयनित लोगों के मध्य में शक्ति का संतुलन कायम किया जा सके |
देश में घटे यह सारे घोटाले बहोत भीतर के प्रशासनिक दर्शन में एक शक्ति के असंतुलन की वजह से हुए थे-- चयन और चुनावी प्रक्रिया से आये लोगों के बीच में | जब आर्थिक नीतियों को 'चुनावी प्रक्रिया से आये लोग'(यानी राजनेता ) - गरीबी हटाओ इत्यादि का बहाना दे कर अपने पक्ष में कर लेंगे तब कौन क्या कर लेगा भ्रष्टाचार रोकने से | चयनित प्रक्रिया की संस्थान -- CAG से लेकर कितने ही सचिवों ने पत्र लिखे की आवंटन यथास्तिथि नहीं हुए मगर उनकी सुनता कौन ! भाई निति के अनुसार तो काम हुआ ही -- जब निति ही यथास्तिथि नहीं थी तब गलत हुआ ही क्या ! कपिल सिब्बल ने इसी तर्क पर तो शून्य नुक्सान की थ्योरी दे दी थी !
चुनावी व्यक्ति (=लोकप्रियता से आये व्यक्ति ) , चयनित व्यक्ति (=प्रमाणित योग्यता के व्यक्ति ) से अधिक प्रभाव शाली हो गयें हैं | इससे शक्तियों का संतुलन बिगड़ गया है | देश की सारी सन्स्थाएं -- राष्ट्रपति के पद से लेकर सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश -- सब के सब इन्ही राजनीतिज्ञों द्वारा ही "चयनित" हो रहे हैं | यही त्रासदी का कारक बन गयी है |
देश में यूपीए और एनडीए ने कार्यक्रम तो बहोत चलाये -- मगर सब में "मनरेगा" और "स्वस्थ्य घोटाला " ही तो हुआ है | आभी प्रथम आवश्यकता योजनाओं से अधिक घोटाला रोकने के प्रबंधन करने की है | वैसे ऊपर-ऊपर सभी भ्रष्टाचार से लड़ाई का दिखावा कर रहीं हैं -- मगर यह राजनीतिज्ञों से पूर्ण आज़ादी वाली एक संस्था का निर्माण किसी को भी नहीं भा रहा है | यही पोल खोलता है की कौन कितना सामाजिक और आर्थिक न्याय के मन से पक्ष में है |
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
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