यद्यपि हिंदी मेरी मात्रभाषा है और यह लेख भी हिंदी भाषा में लिखा है , मगर मैं हिंदी भाषा के लिए किसी दया भाव से यह विचार नहीं लिख रहा हूँ। मैं यथासंभव निष्पक्षता और निर्मोह के साथ हिंदी भाषा और भाषियों के ऊपर टिप्पणी कर रहा हूँ जिसमे हो सकता है की आपको मेरी तरफ से कुछ क्रूरता महसूस हो, हालाँकि की मेरी मंशा मात्र एक निर्मोहित आलोचना और विश्लेष्ण की ही है। मेरा ऐसा करने का मकसद आत्म-सुधार है, आत्म-सम्मान को चोट देना नहीं।
मेरे अपने देखने भर में अंग्रेजी भाषा की तुलना में हिंदी भाषी लोग अधिक मुर्ख और अयोग्य लगते हैं, भले ही एक हिंदी और एक अग्रेज़ी भाषा व्यक्ति , दोनों ही एक सामान डिग्री रखते हों, जिसकी वजह से मुझे मेरे कथन को सिद्ध करने का मापक नहीं है। बल्कि शायद लोक सेवा आयोग की परीक्षा में हिंदी -अंग्रेजी उमीदवारों के उत्तीर्ण होने के प्रतिशत को ही एक लक्षण माना जाना चाहिए, जिसे की हिंदी भाषी उम्मीदवार एक प्रशन चिन्ह का सूचक मान रहे हैं।
तकनीकी, सिद्धान्तिक, दार्शनिक और मानवियता के स्तम्भ से हिंदी भाषी, और कोई भी अन्य भारतिय राज्य भाषा के व्यक्ति, अंग्रेजी भाषी व्यक्ति से अपेक्षाकृत 'कम जटिल'(मूर्ख) समझ वाले होते हैं। मानसिक योग्यता के पैमानों पर भले ही यह दो व्यक्ति, एक अंग्रेजी भाषी और एक भारतीय भाषी, एक समान मापे गए हों(या की भले ही हिंद भाषी किसी अंग्रेजी भाषी से अधिक अंकित हो), मगर बौद्धिक स्तर पर अंग्रेजी भाषी अधिक प्रबल होता है। शायद इसी अंतर को लोक सेवा विवाद में वैचारिक अन्तराल ("communication gap") कह कर बुलाया जा रहा है,(जबकि शायद उचित शब्द Observation Viewpoint Difference होना चाहिए।यह ऐसे ही है की मानो एक व्यक्ति किसी पर्वत चोटी से देख रहा हो, और दूसरा घर में टेलीविज़न से, और दोनों में वैचारिक मतभेद हो जाये !)
यह स्पष्ट कर दूं की मैं मानसिक योग्यता को बौद्धिक योग्यता से भिन्न कर के देख रहा हूँ, और ऐसा करने वाला मैं एकमात्र व्यक्ति नहीं हूँ। कृष्ण समाज अनुयायियों की धर्म दर्शन की एक पुस्तक में मैंने पहले भी इनसानी समझ का ऐसा वर्गीकरण पढ़ा है जिसमे की मानसिक(Mental), बौद्धिक(Intellectual) और अंतरआत्मीय(Spiritual) क्षमता कर के मानव बुद्धि की क्षमता के तीन वर्ग प्रयोग करने गए हैं।
यह भी स्मरण रहे की कोई भी परीक्षा मानवीय बुद्धि के सूचक ही दर्शाती है(proxy indicator), कोई ठोस प्रमाण (concrete evidence) नहीं देती है। इसलिए यहाँ इस विचार-लेख में मैं यह टटोलते समय कि पश्चिमी-पूर्वी सभ्यता के अंतर की दृष्टि से लोक सेवक की योग्यता के लिए आयोग को उम्मीदवारों में क्या -क्या जांच करना चाहिए, यह आलोचना भ्रामक मानूंगा की "ऐसा कैसे की एक भी भारतिय भाषी उम्मीदवार का चयन क्यों होना चाहिए अथवा क्यों नहीं?"। संक्षेप में, परीक्षा का अर्थ उपयोगी व्यक्ति की तलाश है,किसी भाषा विशेष व्यक्ति को प्रोत्साहित करना नहीं। इसलिए यदि कोई भाषा विशेष व्यक्ति समूह तलाश क्रिया में सफल नहीं हो तब 'तलाश क्रिया' यानी परीक्षा को कूटनैतिक द्वेष भाव से न देखें।
भारतिय संविधान अंग्रेजी विचारों पर आधारित है जिसकी वजह से अंग्रेजी भाषी और भारतिय भाषी लोगों में संविधान में प्रयोग करीब करीब सभी विचारों का भ्रमित उच्चारण निर्मित कर लिया है। भारतीय भाष्य का राष्ट्र का विचार अंग्रेजी के Nation के विचार से भिन्न है, ठीक वैसे ही जैसे समाजवाद और Socialism, धर्मनिरपेक्षता और Secularism, प्रजातंत्र और Democracy, संसद और Parliament, न्यायपालिका और Independent Judiciary, अभिलेखा आयोग और CAG, राष्ट्रपति और President as the Head of State.
भारत में सभी विचार मिथकों(pseudo-) के हवाले हैं। इसका एक सम्भावित कारण अनुवाद हुई भाषा का प्रयोग है-जिसमे मूल उत्त्पत्ति राजनैतिक दर्शन विचार की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि छिप जाती है और अनुवाद करी गयी भाषा संस्कृति में एक भ्रमकारी मिथक विचार का जन्म होता है।
इस प्रकार से अंतर मात्र भाषा का नही है बल्कि बौद्धिक स्तर का है, जिसे चलत में communication gap बोल दिया जा रहा है। ऐसा भी नहीं है की अंग्रेजी में बातचीत करना बौद्धिकता का प्रमाण है(जब की यह भी एक खरा सत्य ऐसा भी है) मगर संभावना प्रतिशत उन्ही के हक़ मे होगा।
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