6मई 1970 को अर्नेस्ट स्टुलिंघेर नाम के नासा के एक सम्बद्ध निदेशक के पद पर आसीन एक अन्तरिक्ष वैज्ञानिक ने ज़ाम्बिया की एक नर्स, सिस्टर मैरी जकुंडा को एक पत्रोत्तर में यह तर्क स्पष्ट किये थे कि क्यों अन्तरिक्ष अन्वेषण मानव विकास और सुधार के लिए एक आवश्यक कार्य होगा , इसके बावजूद भी कि अन्तरिक्ष सम्बंधित अनुसंधान बहोत ही खर्चीले प्रयोग होते हैं, तब जबकि अफ्रीकी महाद्वीप पर मानवता की एक बड़ी आबादी भुखमरी, कुपोषण, गरीबी, बिमारी इत्यादि के सबसे विकराल प्रकार से अभी झूझ ही रही है।
(इस पत्र की प्रतिलिपि इन्टरनेट पर आसानी से खोजी जा सकती है।)
आने वाले समय ने डॉक्टर अर्नेस्ट स्टुलिंघेर के तर्कों को सत्यापित भी कर दिया है। आज कंप्यूटर, इन्टरनेट, दूरसंचार, मौसम, खनिज की खोज, चिकित्सा इत्यादि कितनों ही क्षेत्रों में उपलब्ध उपकरण और ज्ञान हमे अंतरिक्ष अन्वेषण के दौरान बाधाओं को सुलझाने तथा अन्तरिक्षिय प्रयोगशालाओं में हुए प्रयोगों से ही प्राप्त हुए हैं।
कुछ वर्षों पहले जब एक प्रगतिशील देश भारत ने मंगल गृह पर अपने खोजी अभियान की घोषणा करी तब उसे भी इस प्रकार के मेहंगे अभियान पर धन व्यय करने वाले कार्य की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। भारत आज भी एक गरीब देश है और आबादी का एक बड़ा प्रतिशत आज भी अमानवीय स्थिति में जीवन यापन कर रहा है।
तब भारत के चिंतकों को भी डॉक्टर स्टुलिघेर के वह तर्क स्मरण हुए कि इस प्रकार के शीर्ष अन्वेषण जन कल्याण, समाज और राष्ट्र कल्याण के लिए क्यों आवश्यक होते है। यह अन्वेषण कैसे मानव विकास और समाज के उत्थान में केन्द्रीय भूमिका निभाते हैं।
भारत के अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों को यह भावनात्मक समझ है की अंतरिक्षीय खोजी अभियान के असफल होने की सम्भावना भी बहोत अधिक होती है। ऐसे में तमाम लागत को एक पल में ही पूर्ण नष्ट हो जाना साधारण घटना है।
मंगल गृह पर अभी तक दूसरे देशों द्वारा भेजे अभियानों से सबक यही मिला था कि सबसे प्रथम और शीर्ष की समस्या गृह तक पहुचने की ही है।इसलिए भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल गृह के अपने प्रथम अभियान के उद्देश्य को मूल तौर पर गृह तक पहुचने की तकनीक के विकास तक ही सीमित रखा। इस प्रकार अभियान की लागत भी कम होती है और आवश्यक उपकरणों को मंगल की कक्षा में प्रक्षेपित करने का प्रयास सस्ते में हो जायेगा।
जाहिर है कि भारत का अभियान मंगल गृह का सर्वप्रथम अभियान नहीं है क्योंकि इस अभियान की तकनीक में दूसरे देशों के अभियानों से प्राप्त मंगल गृह सम्बंधित तकनीकी ज्ञान का उपयोग किया गया होगा। हाँ, रिकोर्डोँ के अहंकार में अभिशप्त भारतियों की बुद्धि को सुख, पीड़ा-निदान देने के लिए यह अवश्य कहा जा सकता है की भारत का अभियान किसी भी देश द्वारा प्रथम प्रयास में प्राप्त सफलता का "प्रथम रिकोर्ड" है।
मगर सस्तागिरी में किये अन्वेषण संभवतः वह योगदान शायद न दे सकें जो कि डॉक्टर स्टुलिंघेर ने कल्पना करे थे। इसलिए आवश्यक होगा कि भारत भी भविष्य के अभियानों में आवश्यक सभी सुविधाओं और तकनीकों को समायोग करे जिससे कि हमारा अन्वेषण कार्य किसी भी देश के पिछले अभियान के क्षितिज के पार जा सके। ऐसा करने से ही हमारे देश और समाज के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
भारत का मंगलयान अभियान और इसकी आलोचना
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