कभी कभी वर्चस्व की लड़ाई ऐसे भी करी जाती है की मनुष्य सत्यधर्म का पालन तो करने की इच्छा रखता है, मगर एक सोची समझी रणनीति के अंतर्गत सत्यधर्म को तब तक अस्वीकृत करता रहता है जब तक की वह सत्यधर्म उसके लोगों के मुख वाणी से बोला नहीं जाता है।
(भई, अगर दुश्मन के मुख से निकले सत्यधर्म को भी यदि आप स्वीकार कर लेंगे, उसका अनुसरण करने लगेंगे तो यह भी अपने आप में आपकी पराजय ही देखी जायेगी ।)
वर्चस्व की लड़ाई में सत्यधर्म से यह समझौता भी आपने आप में असत्य और दुष्कृता को विजय बना देता हैं।
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
वर्चस्व की जंग में सत्यधर्म से समझौता
तर्कों पर आधारित न्याय एक खुल्ला न्यौता है मूर्खता को सर्वव्यापक बनाने का
किसी भी राष्ट्र के लिए दुखद स्थिति तब आती है जब उसका पढ़ा लिखा बुद्धि जीवी वर्ग ही इतना अयोग्य हो जाता है की उचित और अनुचित के मध्य भेद करने लायक नहीं रह जाता है।
राजनीति के प्रभाव में अधिक काल तक जीवन यापन करने से ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है। जब कभी मतभदों के कारण न्याय लंबे समय तक सर्वज्ञात और सर्वमान्य होना बंद हो जाता है, तब न्याय नष्ट ही होने लग जाता है। नैतिकता भ्रमित होने लगती है, और वह भी कमज़ोर हो जाती है। तब अंतःकरण कमज़ोर हो जाता है , क्योंकि मनुष्य आपसी प्रतिस्पर्धा, कूटनीति में एक दूसरे पर विजय पाने के लिए कुछ भी कर्म को विजय के धेय्य से उचित अथवा अनुचित ठहराने लगता है। कूटनीति के कर्म हमारे भीतर के ईश्वर के अंश को, हमारे अंतःकरण को ही नष्ट कर देते हैं। हमारा मस्तिष्क तब सिर्फ तर्कों के आधार पर निर्णय करने लग जाता है। तर्क (logic) के आधार पर न्याय का लाभ यह है की तर्क (तकनीकी ज्ञान, टेक्नोलॉजी, इत्यादि) व्यक्तिगत से मान्यताओं और विश्वासों से मुक्त होते है, और इसलिए आसानी सर्वमान्य हो जाते है। मगर तर्कों के आधार पर न्याय करने का नुक्सान भी है। वह यह की तर्क में कुतर्क(sophistry), भ्रम और भ्रांतियों (logical fallacies) के लिए खूब अवसर होता है, जिसमे आसानी से एक समूची आबादी को ही धोखा दिया जा सकता है, मूर्ख बनाया जा सकता।
तर्कों के अधिक प्रयोग से उत्पन्न हानि से बचने का समाधान यह है की अंतःकरण का भी प्रयोग किया जाये।
अंतःकरण को अधिक विक्सित और कुशल बनाने में मानववादी विषय ज्ञान (humanities) बहोत सहायक होते है। इतिहास, भाषा ज्ञान, समाजशास्त्र, न्याय -कानून, साहित्य , कला (liberal arts), नागरिक शास्त्र, राजनीति विज्ञानं, प्रशासन विज्ञानं, दर्शन शास्त्र में प्रवीण व्यक्ति से अधिक अपेक्षा होती है की उसका अंतःकरण अधिक समग्र और विक्सित होगा। शायद वह मन-मस्तिष्क को संकीर्ण बना देने वाली कूटनीति से मुक्त होगा और अधिक विक्सित अंतःकरण की ध्वनि के कारण न्याय, सत्य करण कर सकने में अधिक् सक्षम होगा।
Jagdish Prakash जी अब क्योंकि आप भी साहित्य और लेखन के विषयों में प्रवीण है , इसलिए मेरी भी आपसे अपेक्षा है की शायद आप सत्य और न्याय का समर्थन करेंगे।
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