(काल्पनिक कथा)
एक चाय वाले 'छोटू' से यूँ ही पूछ लिया की अगर तू बड़ा हो कर देश का प्रधानमंत्री बन गया तब क्या करेगा ।
चाय वाला बोला की वह बरी बरी से दुनिया के सभी देश जायेगा।
मैंने पुछा की इससे क्या होगा ?
छोटू ने कहा की इससे हमारे देश की सभी देशों से दोस्ती हो जायेगी, हमारा रुतबा बढेगा और वह सब हमारी मदद करेंगे पाकिस्तान को हराने में।
मैंने पुछा की क्या किसी और सरकारी अफसर या मंत्री को भेज कर यह नहीं किया जा सकता है ?
छोटू बोला की साहब, किसी छोटे मोटे नौकर के जाने से दोस्ती न हॉवे है, इसके लिए तो प्रधानमंत्री की खुद जावे को होना है।
मैंने पुछा की तब देश के अंदर का काम कौन करेगा ?
छोटू ने तुरंत जवाब दिया की वह सरकारी अफसर और बाकी मंत्री देख लेवेंगे।
मैंने पुछा की अगर यूँ ही किसी के देश में बिना किसी काम-धंधे के जाओगे तब हंसी नहीं होगी की यहाँ का प्रधानमंत्री फोकटिया है, बस विदेश घूमता रहता है।
छोटू ने कटाक्ष किया की ऐसा कोई नहीं सोचेगा। जब हम किसी के यहाँ जाते है तभी तो उससे हमारी दोस्ती होती है। अगर सिर्फ काम पड़ने पर ही किसी के यहाँ जाओगे तो वह क्या सोचेगा की सिर्फ मतलब पड़ने पर आता है।
चाय वाले की अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध की समझ को सुन कर मुझे कुछ और ही सोच कर हंसी आ गयी।
मैंने चाय वाले से पुछा की तू कहाँ तक पढ़ा लिखा है? छोटू बोला की वह स्कूल नहीं जाता है, बस यही चाय पिलाता है।
मुझे उसके जवाब में समग्र शिक्षा नीति की असफलता, बाल-मज़दूरी के दुष्प्रभाव, संभावित नतीज़े दिखाई देने लग गए थे।
मैंने पुछा की तुझे भारत के बारे में क्या मालूम है? भारत क्या है?
चाय वाला बोला की हम सब लोग भारत है, जिनको पाकिस्तान हरा कर के गुलाम या फिर मुल्ला बनाना चाहता है। भारत एक महान देश है जहाँ पहले सभी दवाईया, हवाई जहाज़, पानी के जहाज़, बड़े बड़े साधू संत होते है जिनको इतना पता था जितना आज भी कोई बड़े बड़े कॉलेज के टीचर और डॉक्टरों को नहीं पता है।
चाय वाले से मैंने पुछा की तुझे यह सब कैसे मालूम?
छोटू ने बताया की उसने यह सब जो उसके यहाँ चाय पीने आते है, पास के कॉलेज के स्टूडेंट, उनकी बातें सुनता रहता है।
छोटू से मैंने पुछा की क्या तुझे स्कूल जाने का मन नही करता है ?
छोटू बोला की मन करेगा तो भी क्या? फीस भी तो लगती है। और फिर यह चाय के ढाभे पर काम कौन करेगा ।
छोटू से पुछा की क्या उसे नहीं लगता की पढाई लिखाई जरूरी है।
छोटू बोला जी जरूरी तो है, मगर सब करेंगे तो क्या फायदा। जो पढ़ रहे हैं उन्हें ही पढ़ने दो, बाकि की खेल कूद करना चाहिए। बाकि कामों के लिए भी तो आदमी चाहिए। यह ढाभा कौन चलाएगा। वह ट्रक का सामान कौन खाली करेगा।यह नाली और सड़क कौन साफ़ करेगा। बगल वाली मैडम के यहाँ कपडे-बर्तन कौन करेगा।
छोटू की बातें और दुनिया देखने की नज़र में मुझे अपने देश के हालात और कारण समझ आने लगे थे। मुझे देश के भविष्य की सूंघ मिल रही थी, की अंधकार कितना घना और लंबा-गहरा, दीर्घ काल का है।
मैंने पुछा की देश की भलाई करने के लिए सबसे पहले क्या करना चाहिए?
छोटू बोला की सबसे पहले दुकान चलवानी चाहिए। जब दुकान चलेगी, तभी तो लोगों की काम मिलेगा, और सामान खरीदने को जाओगे। अगर दुकान नहीं चलेगी तब सामान बिकेगा भी नहीं। इसलिए सबसे पहले दूकान चलवानी होगी।
मैंने पुछा की क्या उसे नहीं लगता की सबसे पहले हमें स्कूल चलवाने होंगे?
छोटू बोला की साहब आपका दिमाग तो स्कूल में फँस गया है बस। अरे पढ़ लिख कर क्या कर लोगे। जब दुकान नहीं चलेगी तब कुछ बिकेगा ही नहीं, तब डॉक्टर के पास जाने के पैसे कहाँ होंगे लोगों के पास।
मैंने कहा की भाई दूकान तो पढ़ लिख कर भी चलायी जा सकती है।
छोटू ने साफ़ इनकार कर दिया की ना , पढ़ लिख कर न चलती है दुकान। छोटू को वह तमाम बड़े नाम पता थे जो की बिना पढ़े लिखे ही आज बड़ी बड़ी दुकाने चला रहे है और वह कितने अमीर है।
मैने पुछा की फिर देश कैसे बनेगा।
छोटू बोला की देश के लिए सैनिक होते है जो बॉर्डर पर लड़ते है।
मैंने पुछा की यह सरकारी अफसर और नेताजी लोग क्या करते हैं, फिर।
चाय वाले छोटू ने कहा की यह सब कुछ न करे हैं, बस बैठ कर पैसा काटे है, देश बेच कर लूट लेवे हैं।
छोटू के "व्यवहारिक ज्ञान" से मैं हतप्रभ था। मुझे आभास हो गया था की अब तो इस छोटू को आदर्श और सैद्धांतिक समझ देना असंभव काम था। उसे अपने सही-गलत का ठोस नजरिया जिंदगी और हालात ने ही दे दिया था। अब अगर कोई तरीका है तो बस यह की आगे कोई चाय वाला छोटू न बने।
छोटू करप्ट तो नहीं था, मगर करप्टिबल ज़रूर था क्योंकि उसकी समझ ही टूटी-फूटी और दुरस्त नहीं थी।
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
चाय वाला "छोटू".... असफल भारत का एक व्यक्ति नहीं, एक सोच है
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