कल्पना करिये यदि फेसबुक का free basics गरीबों के नाम पर वर्तमान में आ जाता है तब फिर आज से 50 साल भविष्य की क्या-क्या समस्याएं होंगी, और उन समस्याओं का क्या-क्या आर्थिक और राजनैतिक "समाधान"हो रहा होगा।
low बैंडविड्थ पर गरीबों को कुछ मुफ़्त वेबसाइट उपलब्ध करवाई जा रही हैं मगर गरीबों की लगातार शिकायतें आ रही है कि स्पीड बहोत कम है, और सभी आवश्यक जानकारियां और वेबसाइट खोलने को नहीं मिलती है। दूसरी तरफ उस काल की जनता और आलोचक भूतकाल में घटी free basics की debate को भुला चुके हैं, और वह आलोचना कर रहे है की एक तो 2G सुविधा फ्री दी जा रही है, उसपे भी इन गरीबों के इतने नखरे हैं। दान की बछिया के दांत गिन रहे हैं।
hi बैंडविड्थ वाले मिडिल क्लास उपभोक्ता परेशान है की उनको दाम ₹7000/- प्रति माह से बढ़ा कर ₹9000/- देने पड़ रहे हैं। आज दाम डेटा की मात्र के अनुसार नहीं पड़ते हैं, 700/- में 3gb data, 30 दिनों के लिए । यह तो पुराने ज़माने की बात हो गयी है। आज 2G बैंडविड्थ पर गरीबों को फ्री डेटा मिलता, कुछ लिमिटेड, लौ बैंडविड्थ वेबसाइट से, slow स्पीड पर। और बाकी भोगी लोग जिनको इंटरनेट की लत लगी है, और वह hi स्पीड पर hi बैंडविड्थ website खोलने के शौखीन हैं, वह अपनी हैसियत के अनुसार 3g/4G/5G/6G बैंडविड्थ में से किसी पर भी ₹8000 से लेकर ₹45000/- प्रतिमाह तक पर इंटरनेट पैक लगवा कर चलाते हैं। और साथ में भर-भर कर सरकार पर महंगाई का आरोप लगा कर पानी पी-पी कर कोसते हैं।
सरकार में वही चालबाज़, धूर्त राजनैतिक दल है जिन्होंने reforms के कु-चक्र में अर्थव्यवस्था को डाल कर अपने उद्योगपति दोस्तों का मुनाफा बड़ा रहे हैं। अब उनको लगने लगा है की 2G बैंडविड्थ वाली 'फ्री बेसिक्स' की सुविधा को सुधार करने के लिए उसे मार्किट कॉम्पिटेशन लाना होगा। इसलिए फ्री बेसिक्स के अलवा कुछ एक "economy2G" , "pro-poor" जैसी कुछ और लौ बैंडविड्थ सुविधाएं लानी होंगी। मगर जब तक 2G डेटा फ्री रहेगा, इसको सुधार, यानि reforms, के वास्ते market competetion में नहीं डाल सकते है। अन्ततः , कुछ कम यानि सस्ते दाम पर 2G डेटा पर सुविधा सुधार के नाम पर यह नई कंपनियां भी मार्किट में उतर आई हैं।
सरकार का विश्वास है कि इनके आने से कॉम्पिटेशन होगा जिससे सुविधा में कुछ रिफार्म होगा। जनता में 2G सुविधा की "सब्सिडी" खत्म होने का आक्रोश है, मगर आलोचकों की आलोचना से शर्मसार होकर वह चुपचाप इस low price सुविधा को मार्किट में उतरने देते है। आलोचक कहते हैं की भई आप फ्री में 2G सुविधा भी चाहते हो और उसमे सुधार भी चाहते हो, तब फिर एक साथ दोनों थोड़े ही मिल सकेगा।
तो फ्री बेसिक्स के आत्म-लज्जा से ग्रस्त गरीब अब 2G data के लिए भी कुछ दाम देने को तैयार हो गए है।
उधर मिडिल क्लास उपभोक्ता महंगाई और बढ़ते इंटरनेट दामो को कोसते हुए भी उसे लगवाये हुए है, अपनी सामाजिक शान या फिर बच्चों की पढ़ाई लिखाई और उनका भविष्य संरक्षित करने के वास्ते। मगर और कोई चारा नहीं उपलब्ध है। यदि दाम के मुताबिक सुविधा नहीं मिल रही है तो consumer court जा सकते है, मगर वापस trai जैसी संस्था के द्वारा 2G/3G/4G/5G/6G बैंडविड्थ सुविधाओं को नियंत्रित नहीं करवाया जा सकता है।
इधर राजनैतिक दल में एक ख़ुशी और भी है। भूतकाल में जो जनता फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया सुविधाओं के चलते उनके उल्लू बनाओं षड्यंत्रों से जागृत हो कर बच निकलती थी, अब वह hi बैंडविड्थ पर उपलब्ध फेसबुक और ट्विटर को खोल ही नहीं सकती,क्योंकि इस बैंडविड्थ के दाम इतने अधिक है की कई गरीबों को यह फ़िज़ूल खर्ची लगने लगा है। और वह जनता अब वापस अंधकार युग में जा कर सोने चली गयी है। बस, अब वापस राजनैतिक दलो को जनता को उल्लू बनाने का रास्ता सहज हो गया है।
तीनों समय काल से मुक्त, त्रिकाल दर्शी शायद सिर्फ नारद मुनि है जो ऊपर आकाश गंगा में विचरते हुए इस सारे घटनाक्रम को तीनों युग, भूत, वर्तमान और भविष्यकाल में एक साथ देख कर मुस्करा रहे है की कैसा बुद्धू प्राणी है यह इंसान जो खुद को इतना बुद्धिमान समझता है, मगर असल में खुद ही अपने समाज में जहाँ कोई समस्या नहीं थी, वहां गरीबों की मदद के नाम पर अमीरी-गरीबी की समस्या को जन्म देता है, फिर उसे reforms के कु-चक्र में डालता है, और फिर अनंत मार्किट कॉम्पिटेशन में इसके सुधार का इलाज़ ढूंढता अन्तकाल तक खुद को कॉर्पोरेट का गुलाम बना लेता है। और फिर शुरू से, एक आज़ादी की जंग शुरू कर देता है।
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
काल्पनिक कथा: free basics में भविष्य का युग
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