संघ का बारबार आरोप यह है कि भारत का इतिहास मार्क्सिस्टवादियों ने ऐसा लिखा है जिसमे प्राचीन और पैराणिक भारत को "सही से दर्शाया नही गया"। संक्षेप में यदि हम संघियों की बात सुने तो वह कहना यह चाहते हैं की हिन्दू धर्म वाले भारत को मौज़ूदा इतिहासकार गौरान्वित नही करते हैं, जबकि मुग़लों और ब्रिटिशों वाले भारत को करते हैं।
वैसे मनोविज्ञान की जानकारी में सबसे प्रथम तो यही ज्ञान सांझा कर ली जाये कि बारबार अपने आसपास गौरव ढूंढना एक मनोरोग होता है। इसे narcissism पुकारते हैं। हिन्दी चलन भाषा में इसे घमण्ड कहा जाता है। घमंडी व्यक्ति ऐसे सत्य को स्वीकार नही करते हैं जिससे उनको स्वयं के श्रेष्ठ होने का अहसास नही मिलता हो। ऐसे इंसान cause and effect में गलतियां करते हैं, क्योंकि यदि कोई ऐसे cause सामने आये जो उनके "गौरव" के अनुरूप नही हो, तब वह उसे अस्वीकार कर देते हैं।स्वाभाविक है, यदि cause की पहचान उचित नही होती है, तब ईलाज़ भी गलत होता है। ऐसे लोग अपने परिवार, समाज और पूरे देश को तक तबाह कर बैठते हैं। उदाहरण में रावण को देखिये जिसने परिवार और देश तबाह किया, और मौजूदा में north korea को देखिये। hitler से लेकर सद्दाम तक , यह मनोरोग तमाम तानाशाहों की मूलभूत समस्या थी जिसके चलते उन्होंने देश और समाज बर्बाद कर दिये हैं।
मनोवैज्ञानिक बताते हैं की narcissist व्यक्तियों के मस्तिष्क को एक किस्म का आनंद प्रवाह होता है "गौरव" या "अभिमान" के दौरान। इन व्यक्तियों के मस्तिष्क में dopamine और कुछ अन्य आनंद देने वाले hormones का रिसाव बड़ जाता है, जो की सामान्यतः अन्य इंसानो में यौन क्रिया के दौरान अधिक पाया जाता है। तो, गौरव करने का आनंद तुलना करने पर कुछ यौन क्रिया के जैसा ही होता है, जो की narcissism से ग्रस्त व्यक्ति के मस्तिष्क की निरंतर मांग बनी रहती है।
इतिहास के अन्वेषण का सत्य उद्देश्य क्या होना चाहिये, यह दार्शनिक सवाल आज संघ ने हमारे चितंन को प्रस्तुत किया है।
क्या इतिहास का अन्वेषण गौरव ढूढ़ने के मकसद से होना चाहिये, या सत्य कारणों (cause) को चिन्हित करने के लिए जिससे की समाज अथवा देश पुनः उसी गलतियों को दोहरा न बैठे जहां से समाज में बर्बादी और तबाही आयी थी ?
वैसे वास्तविक हिन्दू धर्म शिव का धर्म माना गया है, जहां सत्य को सर्वश्रष्ठ स्थान मिलता है, शिव से भी आगे और सुन्दर से भी आगे। शिव पूजन का बड़ा मंत्र यही है-- सत्यम, शिवम सुंदरम। मगर आजकल इसी हिन्दू धर्म के संरक्षण की आड़ में ही यह खेल किया जा रहा है की शायद शिव को सत्य के आगे कर देने की चेष्टा हो रही है। यदि इतिहास के अन्वेषण का उद्देश्य यह मान ले कि उसमे कुछ गौरान्वित करने वाला होना चाहिये, तब हम ऐसे शक्तियों को प्रोत्साहित कर बैठेंगे जो दंभ को "गौरव" बुलाती है, और हर उस सत्य को अस्वीकार कर देती है, जो उनको यौन परमसुख का अहसास नही देती हैं !
इतिहास के अन्वेषण के दैरान यह हिन्दू दंभ ग्रस्त मानसकिता शायद सत्य के संग छेड़छाड़ कर रही है। उसे मुग़लों की श्रेष्ठता पसंद नही है, क्योंकि वह उसे "गौरव" करने का सुख नही देती है। वो अकबर की greatness से तिलमिला कर महाराणा प्रताप का ज़िक्र इसलिये ही छेड़ती है, यह भूल कर कि अकबर की greatness तमाम मुग़ल बादशाहो की सूची में से भी करि जाती है। मुग़ल इसलिये क्योंकि भारत भू खंड पर मुग़लों ने बहोत लंबे समय शासन किया है, जबकि महाराणा प्रताप ने नही किया है।
दम्भ से ग्रस्त हिन्दू वैचारिकी मुग़लों और फिर उनके उपरान्त british की श्रेष्ठता में "स्वाभिमान' (आत्मविश्वास) या self confidence की हानि समझती है। शायद इसलिये कि वह तस्वीर के अन्य रुख पहचान नही सकती है जहां हम अपने आत्मविश्वास को निर्मित करने की दूसरी भी क्षमता रखते हैं। आत्मविश्वास और "दंभ करने" में अंतर सूक्ष्म होता है। आत्मविश्वास दूसरे के तिरस्कार और अपमान पर खड़ा नही होता है। जबकि दंभ बारबार यही करता है। दंभ सदैव ही अपमान, उपहास, तिरस्कार पर खड़ा होता है, बारबार स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करता है। चाहे जितना और विचित्र कोण क्यो न हो।
आप बारबार ताजमहल की श्रेष्ठता को अस्वीकार नही कर देते हैं, हिन्दू मंदिरों की श्रेष्ठता को साबित करने के लिए। श्रेष्ठ दोनों ही है, मगर जब किसी एक का चुनाव करना आवश्यक बन जाता है तब तमाम दार्शनिक कारणों से चुनाव समिति किसी एक के पक्ष में निर्णय दे देती है। आप मतभेद नही कर बैठते हैं कि आपके संग अन्याय हुआ है।और फिर बात को ठान कर इस हदों तक चले जाएं कि आरोप लगाये कि समूचा इतिहासकार समूह ही "marxist वादी " था, उसने आपके पक्ष को सही से दिखाया नही।
आप मुग़ल घृणा से स्वयं को ग्रस्त कर लें तो ग़लती आप की ही होगी। यदि आपको बारबार हर एक आक्रमणकारी ने रौंदा है तो सत्य कारणों को चिन्हित करना आपकी जिम्मेदारी है। आप जयचंद और मीर जफ़र के नामों के पीछे छिप कर अपने दंभ के प्रकोप से निकलते परिणामों से मुंह कब तक छिपाएंगे। कुछ न कुछ कमी आपकी भी होगी, जो सत्य आप स्वीकार नही करना चाहते हैं। याद रखिये की असल हिन्दू समाज में तो विभीषण को भी पूजा गया है, की धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए उसने अपनो का भी त्याग कर दिया था। बोलने वालों से भले ही उसे घर का भेदी बुलाया है, मगर धर्म संस्कारों में विभीषण मर्यादा पुरषोत्तम राम के परमभक्त माने गये हैं। धर्म ही श्रेष्ठ था, चाहे फ़िर धर्म की रक्षा में अपनो के ऊपर ही तीर क्यों न चलाने पड़े , यह भगवद गीत में भी कहा गया हैं। आप धर्म के मार्ग में अपने से विमुख हो कर उठाये गए विभीषण के कदमों को देशद्रोह और राजद्रोह करके अपने दर्भ ग्रस्त आचरण को छिपा नही सकते हैं। आपको अपने बचाव के प्रमाण प्रस्तुत करने चाहिए थे की आप धर्म संगत थे। ।
जिस धर्म में सत्य को शिव के ऊपर का स्थान है, उस धर्म की परिभाषा में सत्य ही आता है। कहीं आप सत्य के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? क्या आप सत्य की चिन्हित करने में secular प्रमाणों के मानदंड को अस्वीकार कर देना चाहते हैं? क्या आप secular approach और secular class of evidence के मानक का खंडन कर देना चाहते हैं?
तमाम तर्कों की जटिलताओं में छिपे भेद को देखने में गलतियां करि जा रहीं हैं। आयुर्वेदा (और यूनानी, homeopathy, ) क्यों मुख्य धारा की चिकिस्ता पद्धति नही माने जाते है, इसके पीछे में जो secular evidence की कहानी है, शायद आप उससे वाकिफ़ नही है
आपके मौज़ूदा सारे प्रयास और चेष्टाएं खुद आपको ही दंभ ग्रस्त दर्शाने लगे हैं। आप समाज की जनसख्या में दंभ का प्रसार कर रहे है, उनमे उन्माद का संचार कर रहे हैं।
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
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