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Defence वालों के घोटाले

नेवी वाले सफ़ेद, चमचमाती uniform पहन कर scams करने में उस्ताद लोग होते हैं।

मुम्बई के कोलाबा क्षेत्र में आदर्श सोसाईटी घोटाला क्या किसी को याद है। इस घोटाले के उजागर हो जाने के बाद लंबे समय तक ये मामला court की सुनवाई में चलता रहा है, और अंततः कोर्ट ने मामले को घोटाला करार देते हुए बिल्डिंग की कुर्की करवा दी। आज ये बिल्डिंग उजाड़ खड़ी हुई दुनिया को गवाही देती है कि कहीं कुछ तो बहोत बड़ा घोटाला हुआ है, मगर जो सटीक जानकारी के संग दुनिया वालो को बताया नही जाता है, शायद इसलिये कि नेवी वालो की सफ़ेद पोशाक पर दाग के छीटें अच्छे नहीं दिखाई पड़ते हैं लोगों को।

घोटाला क्या था? क्या गड़बड़ करि थी नेवी के आला अधिकारियों ने?
कोलाबा क्षेत्र ज़मीन का छोटा सा, "लटकता हुआ" (appendix) भाग है दो तरफ से समुन्दर से घिरा है। यहां का मौसम और आबोहवा इतनी रमणीय है कि सभी लोग यहाँ बसना पसंद करते हैं। अफसोस ये है कि जमीन का भूक्षेत्र इतना कम है कि इतने लोगों को बसाना संभव नही है। उस पर भी, इतने से भूक्षेत्र पर नेवी, आर्मी ने अपनी छावनी डाली हुई हैं।  और अब नेवी वाले लोग राष्ट्रीय सुरक्षा का वास्ता दे कर कोई और building के निर्माण को अनुमति नहीं लेने देते हैं। जो एक दो building पहले से बनी हुई है बस, उतनी ही है, उससे आगे नहीं। यानी बेहद महँगी और कीमती जमीन है यहाँ पर! 

कई सारे नामी गिनामी बिल्डरों ने कोशिश करि मगर नेवी ने ये होने नहीं दिया।

फ़िर पता नही कहाँ अचानक से एक बिल्डिंग का निर्माण होने लग गया। कहाँ से आयी ये अनुमति? तफ्तीश पर पता चला कि इस सोसाईटी में कुछ नेवी अधिकारी, और अन्य उच्च अधिकारियों(IAS और IPS) के भी निजी आवास थे ! 

ये होता है नेवी वालों का घोटाला। टीवी पर और फिल्मों में खूब सफ़ेद कपड़े डाल कर , सलूट करके , देश भक्ति के गीत गा गा कर साफ छवि बनाई। और फिर देश के लोगों को जिस फल को प्राप्त करने से रोका -- राष्ट्रीय सुरक्षा का वास्ता दे कर -- खुद वही कर लिया !

आदर्श सोसाईटी बिल्डिंग के फ्लैट यदि निर्माण होने के बाद बिकते , तब कुछ नही तो दसों करोड़ में जाते ! क्या ये सब सही होता? क्या ये घोटाला नहीं माना जाना चाहिए?

नेवी के घोटाले यहाँ तक ही सीमित नही हैं। आपको कोलाबा क्षेत्र में घटे एक और भी पुराने घोटाले के बारे में बताते है। मर्चेंट नेवी की नौकरी की भर्ती में !

मर्चेंट नेवी की नौकरी युवाओं में पसंद करि जाने वाले नौकरी है, जिसमे दुनिया भर के समुंदरों में घूमना शामिल है, और बहोत तगड़ी तंख्वाह भी मिलती है।  जहाज़ों पर आलीशान रहने को मिलता है।

इतनी अच्छी , आकर्षक नौकरी को नेवी के लोगों ने एक चक्कर चला कर केवल अपनी संतानों के किये कैसे "सुरक्षित" (= आरक्षित) किया था, ये कहानी वही है। 

मर्चेंट नेवी में प्रवेश करने के लिए 1990 के दशक में जो चयन के मानक थे, उसमें मूलतः गणित, भौतिकी की 12वीं तक की पढ़ाई थी, और उसके बाद किसी निजी या फिर किसी सरकारी शिपपिंग कंपनी से यदि कैडेट के प्रशिक्षण के लिए सौगात मिल जाये तो काम पूरा हो जाता था। मगर इसके बीच में, एक छः महीने का आरंभिक प्रशिक्षण किसी तटीय प्रशिक्षण केंद्र से लेना आवश्यक था। उस समय में आलम यूँ था कि यदि किसी युवा को किसी भी जोड़ जुगत से ये तटीय प्रशिक्षण प्राप्त हो जाता था, तब फिर आगे तो वह नौकरी कर ही लेता था, कैसे भी करके ! देशवासियों को ये सच नहीं समझ आता हैं कि Competetive प्रवेश परीक्षा की योग्यता वगैरह का वास्तव में तो दुनिया में कोई अर्थ नही होता है। उनको लगता है कि competitive exams इसलिये करवाये जाते हैं कि कल को duty को करते समय इस ज्ञान की वाकई में ज़रूरत पड़ती है।  competetive exams देने वाले syndrome से पीड़ित युवाओं को competetive exams को करवाये जाने का सच समझ में नहीं आता है। competition की इतनी पढ़ाई करते करते युवाओं को लगने लगता है कि पढ़ाई की वाकई में आगे भविष्य में ज़रूरत होती है, नौकरी में duty को करने के लिए ! जबकि competitve exams का असल मक़सद छटनी करने तक का ही होता है।

नेवी वालो ने चक्कर चलाया और ts jawahar नामक अपना खुद का एक तटीय प्रशिक्षण केंद्र चालू किया, कोलाबा में, जिसमे केवल नेवी के लोगों की सन्तानें ही जाती थी ! हो गया काम !  जिस नौकरी के लिए देश के युवा बेरोज़गारी के माहौल में पाने के लिए तरस रहे हैं, नेवी वालों ने उसी जनता के पैसों पर ऐसा व्यूह रचा कि उसकी संतानों के लिए खास वो नौकरी "सुरक्षित" हो गयी ! ये सब का सब, एकदम मान्य - सफ़ेद पोश , और करदाता के पैसों पर !  बिना किसी open प्रवेश परीक्षा की कसौटी का सामना करे बगैर !

अरे वाह !

ये होती है नेवी की सफेदपोशी ।
बाद में लोगों की आपत्ति उठाये जाने के बाद चुपके से ts jawahar को बंद कर दिया गया। ये मामला "घोटाला" कहला कर कभी भी दुनिया वालो के सामने आया ही नही ! आज वो ts जवाहर के प्रशिक्षित नेवी वालों के संतान-cadet मर्चेंट नेवी के अधिकारी बने शान से घूमते और पैसा कमाते हैं। 

शायद नेवी अधिकारियों और ratings के आपस में  झगड़ो और विवादों से तंग आ कर, कि कहीं पोल पट्टी दुनिया के सामने नही खुल जाये, इस केंद्र को चुपके से बंद कर दिया था नेवी वालों ने। आपसी झगड़े शायद ऐसे रहे होंगे कि, 'मेरे बच्चे को भी भर्ती करो, वर्ना मैं पोल खोल दूंगा, जनता कर पैसों से क्या मलाई जमा कर खा रहे हो, जनता को ही मना करके। '

आज पत्रकारों को इसके शीर्ष पदस्थ अधिकारी presstitute भी बुलाते हैं !

जय हो !

मनगढंत रचा हुआ इतिहास और पुरातत्व विज्ञान से लिखा हुआ इतिहास

इतिहास और पुरातत्व विज्ञान में अंतर भी है और संबंध भी। "इतिहास रचने" की घुड़क मनुष्यों में बहोत पुराने काल से रही है। सभी ने अपने अपने हिसाब से अपना आज का ब्यूरा लिखा था, इस हिसाब से सोचते हुए कि यही लेखन भविष्य काल में पलट के देखे जाने पर "इतिहास" कहलायेगा, और तब हम उस इतिहास में साफ़-सफ़ेद दिखयी पड़ जाएंगे।।
ये सब इतिहास मनगढंत था।

तो, अब सत्य इतिहास कैसे पता चलेगा? कैसे इंसानियत को अपने आज के काल की समाज के तमाम क्रियाएं बूझ पडेंगी? सत्य कारण किसे माना जाये? - ये कैसे तय करेंगे इंसानो के मतविभाजित समूह? ऐसे निर्णयों के लिए तो सत्य इतिहास मालूम होना चाहिए, मनगढंत वाला इतिहास नहीं।

जवाब है --पुरातत्व की सहायता से!

पुरातत्व एक विज्ञान होता है। और वो जब इतिहास लिखता है तब वो मनगढंत को और सत्य दमन को - अन्वेषण करके अलग कर देता है। पुरातत्व ज्ञान जो लिखता है, वो सत्य की ओर खुद-ब-खुद जाता है ।
तो फ़िर कोई भी व्यक्ति लाख बार अलाउदीन खिलिजि और पद्मावती लिख के इतिहास लिख ले, एलेक्सजेंडर और पोरस का इतिहास लिख ले, ग़ज़नी और पृथ्वीराज चौहान का इतिहास लिख ले, चाणक्य और विष्णुगुप्त का इतिहास लिख के "इतिहास रच ले",
मगर पुरातत्व विज्ञान खोज ही लेता है कि सत्य वाला इतिहास क्या था , और मनगढंत क्या ।

घमंडी, arrogant नौकरशाही और भारत के बुद्धिहीन इतिहासकार

हम जब की दावा करते हैं कि नौकरशाह देश के करदाता के पैसों पर ऐश काटता है, तब नौकरशाह बहस लड़ाता है कि , फिर तो टैक्स हम भी तो देते हैं। यानी टैक्सदाता("income tax") भी हम ही तो हुए। तो फिर अपने पैसे पर ऐश काटना, इसमे ग़लत क्या हुआ? 

मानो जैसे टैक्स से अर्थ सिर्फ income tax ही होता है।

यहाँ ग़लती देश के इतिहासकारों की भी है, कि उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम में विश्व आर्थिक इतिहास को कहीं लिखा ही नही हैं। छात्रों ने इतिहास के विषय में बहोत अधिक व्यसन गाँधी-नेहरू-सुभाष-पटेल में बर्बाद किया है, और फिर अख़बर महान और महाराणा प्रताप शौर्यवान को साबित करने की बहस में खपाया है। छात्रों को समाज में आर्थिक चक्र के विकास की कहानी का अतापता नही है, वर्तमान युग की आर्थिक व्यवस्था , टैक्स व्यवस्था कहां से उद्गम हुई, और "टैक्सदाता" से अभिप्राय में मात्र "income tax payer" क्यों नही आना चाहिए , ये सब भारत की वर्तमान पीढ़ी की नौकरशाही को पढ़ाना समझना असम्भव हो चुका है। 

और तो और, नौकरशाहों ऐसे उद्दंड भी चुके हैं कि उनके अनुसार टैक्स तो मात्र 1 प्रतिशत आबादी ही देती है! यानी gst और अन्य टैक्स भरने वाले टैक्स दाता होते ही नही! ( और इसलिये उन लोगों को अधिकार नही है नौकरशाहों पर सवाल उठाने का कि करदाता के पैसों पर अय्याशी कैसे?)

यह हालात है इस देश की नौकरशाही की बुद्धि के।

हिंदुत्ववादियों की क्या शिकायत है इतिहासकारों से

'हिंदुत्ववादी कौन है?' का वास्तविक बिंदु ऐसी ही post में से निकलता है।

हिंदुत्ववादी उन लोगों को बुलाया जा सकता है जो अतीतकाल की मुग़ल/मुस्लिम सम्राट के दौरान की घटनाओं से आजतक सदमा ग्रस्त हो कर नाना प्रकार के जलन (jealousy), कुढ़न(grudge) जैसे मानसिक विकृतियां(inferiority complexes) अपने भीतर में पाल रखें हैं।

और इन complexes के चलते उनकी वर्तमान काल के इतिहासकारों से ये माँग कर रहे हैं की स्कूली पाठ्यक्रमो में मुग़लों/मुस्लिमों के प्रधानता/महानता के मूल्यांकन को नष्ट कर दें।

और फ़िर अपनी इस माँग को प्राप्त करने के लिए कई सारे उलूलजुलूल "तर्क फेंक रहे है" सामाजिक संवादों में।

जैसे कि, ऊपरलिखित वाक्य।
ये उलूलजुलूल इसलिये हो जाता है क्योंकि मुद्दा ये नही है कि क्या ये सत्य है, बल्कि ये है की क्या जो ज्ञान ये स्कूली किताबो में चाहते हैं, वो इतिहासकारों की दृष्टि से प्रधान(गौढ़) बिंदु का विषय ज्ञान है, या नही?

वर्तमान पीढ़ी के इतिहासकारों के अनुसार अकबर की महानता को जानना और समझना महत्वपूर्ण है भावी पीढ़ियों के लिए, क्योंकि अकबर ने जो कुछ योगदान दिये है , (राज्य प्रशासन रचना , टैक्स नीति, इत्यादि के विषय में ), उनके पीछे के motivation शायद यही से व्याख्यान प्राप्त कर सकता है।

मगर ,
हिंदुत्ववादी वो लोग है, जो इतिहासकारों के द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम की किताबो में अकबर को महान बताये जाने से रुष्ट हैं (किसी प्रकार के जलन, कुढ़न और सदमा, complexes से ग्रस्त हो कर) और अब वो इस चाहत को पूर्ण करने के लिए नाना प्रकार के कु-तर्कों को सामाजिक संवाद में प्रवेश करके अपनी कुढ़न के मुताबिक इतिहासकारों के मूल्यांकन को बदलवा देना चाहते हैं।

Right?

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